गुरुवार, 19 अगस्त 2010

ज़िन्दगी

दुख ने तो सीख लिया आगे-आगे बढ़ना, और सुख सीख रहे पीछे-पीछे हटना
सपनों ने सीख लिया टूटने का ढंग और सीख लिया आँसुओं ने आँखों में सिमटना
पलकों ने पल-पल चुभने की बात सीखी, बार-बार सीख लिया नींद ने उचटना
दिन और रात की पटरियों पे कटती है, ज़िन्दगी नहीं है, ये है रेल-दुर्घटना।

रचना: ज़िन्दगी
रचियता: कुँवर बेचैन

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